My father remembers a lot of Urdu and Hindi poetry. I love listening to short or long poetry from him. For me, having grown up in Hindi, English and Gujarati world, Urdu represented my father's generation. It represented तहज़ीब, it represented wisdom and elegance. The words, the deep meaning, the way the words flow from your tongue even in a short two line couplet just touches my heart.
Last time when I went and lived with my father in fall-winter of 2012 (he was 82 years old then), I wrote down some of his Hindi and Urdu poems that he often remembers and recites. Today, I wanted to share one of the Hindi poems he remembers from his youth, called ज़िन्दगी (Life).
ज़िन्दगी
Published on 21st October 1951
Navbharat Times
विश्व में परिवर्तनों का नाम केवल ज़िन्दगी
रात की इन तड़पनो का नाम केवल ज़िन्दगी
हो गया थिर जो उसे पाषाण कहना चाहिए
एक गतिमय जीव को इंसान कहना चाहिए
जिन विचारो को बदलने की कभी आदत नहीं
उन विचारो को सदा समशान कहना चाहिए
शक्तिशाली जीवनो का नाम केवल ज़िन्दगी
आँख दो टकरा गयी हो जब किसी के लोचनो से
हो गया हो मुग्ध जो भी रूप के कुछ कंपनो से
मौन जीवन वाटिका में प्यार के तरुवर तले
मिल गए हो प्राण जिसको राह में आनेबनो से
उन मिलन के दो क्षणों का नाम केवल ज़िन्दगी
कर्म करते है निरंतर पर कभी कहते नहीं
शीश देते है मगर अपमान को सहते नहीं
बाँध कर टूटी जिन्हे दीवार कारावास की
जो गुलामी में किसी के एक पल रहते नहीं
उन नरो के दर्शनों का नाम केवल ज़िन्दगी
बंधनो से चाहता है मुक्त होना सब ज़माना
चाहता हूँ में किसी के लोचनो में घर बनाना
बंध गया जो दो भुजो के बंधनो में एक पल भी
चाहता हूं मौन कारावास में जीवन बिताना
प्यार के इन बंधनो का नाम केवल ज़िन्दगी
खेल जाते वीरवर हँसते हुए निज प्राण पर
आंच पर आने नहीं देते कभी सन्मान पर
शत्रुओं के नाश को संघर्ष में चमकी हो जो
खौल उठता रिक्त जिनके एक ही एह्वान पर
तल्वार की उन झुंझुनो का नाम केवल ज़िन्दगी
जब जवानी रूप में लिपटी हुई गाती हुई
प्यार पथ पर ठोकरें आती चली खाती हुई
पायलों की रुंझुनाहट कान में आती है जब
भाग जाती नींद भी जब रात को आती हुई
उन नूपुरों की रुंझुनो का नाम केवल ज़िन्दगी
Last time when I went and lived with my father in fall-winter of 2012 (he was 82 years old then), I wrote down some of his Hindi and Urdu poems that he often remembers and recites. Today, I wanted to share one of the Hindi poems he remembers from his youth, called ज़िन्दगी (Life).
ज़िन्दगी
Published on 21st October 1951
Navbharat Times
विश्व में परिवर्तनों का नाम केवल ज़िन्दगी
रात की इन तड़पनो का नाम केवल ज़िन्दगी
हो गया थिर जो उसे पाषाण कहना चाहिए
एक गतिमय जीव को इंसान कहना चाहिए
जिन विचारो को बदलने की कभी आदत नहीं
उन विचारो को सदा समशान कहना चाहिए
शक्तिशाली जीवनो का नाम केवल ज़िन्दगी
आँख दो टकरा गयी हो जब किसी के लोचनो से
हो गया हो मुग्ध जो भी रूप के कुछ कंपनो से
मौन जीवन वाटिका में प्यार के तरुवर तले
मिल गए हो प्राण जिसको राह में आनेबनो से
उन मिलन के दो क्षणों का नाम केवल ज़िन्दगी
कर्म करते है निरंतर पर कभी कहते नहीं
शीश देते है मगर अपमान को सहते नहीं
बाँध कर टूटी जिन्हे दीवार कारावास की
जो गुलामी में किसी के एक पल रहते नहीं
उन नरो के दर्शनों का नाम केवल ज़िन्दगी
बंधनो से चाहता है मुक्त होना सब ज़माना
चाहता हूँ में किसी के लोचनो में घर बनाना
बंध गया जो दो भुजो के बंधनो में एक पल भी
चाहता हूं मौन कारावास में जीवन बिताना
प्यार के इन बंधनो का नाम केवल ज़िन्दगी
खेल जाते वीरवर हँसते हुए निज प्राण पर
आंच पर आने नहीं देते कभी सन्मान पर
शत्रुओं के नाश को संघर्ष में चमकी हो जो
खौल उठता रिक्त जिनके एक ही एह्वान पर
तल्वार की उन झुंझुनो का नाम केवल ज़िन्दगी
जब जवानी रूप में लिपटी हुई गाती हुई
प्यार पथ पर ठोकरें आती चली खाती हुई
पायलों की रुंझुनाहट कान में आती है जब
भाग जाती नींद भी जब रात को आती हुई
उन नूपुरों की रुंझुनो का नाम केवल ज़िन्दगी